टूटता हु मैं फिर भी सवर जाता हूं।
इन पहाड़ियों से मैं फिर भी उतर जाता हूं।।
जितना डराते है मुझे लोग इस जमाने के ।
मैं उनकी बातों से उतना ही निखर जाता हूं।।
वक़्त के साथ चलना मुझे आता था मगर।
आपनो की भीड़ में चलने से लहर जाता हूं।!
खो न दु अपनो की उंगलियों का सहारा ऐ दोस्त।।
बसा के दिल मे सभी को मैं निखर जाता हूं।।
~~~मोहित श्रीवास्तव
इन पहाड़ियों से मैं फिर भी उतर जाता हूं।।
जितना डराते है मुझे लोग इस जमाने के ।
मैं उनकी बातों से उतना ही निखर जाता हूं।।
वक़्त के साथ चलना मुझे आता था मगर।
आपनो की भीड़ में चलने से लहर जाता हूं।!
खो न दु अपनो की उंगलियों का सहारा ऐ दोस्त।।
बसा के दिल मे सभी को मैं निखर जाता हूं।।
~~~मोहित श्रीवास्तव