Sunday 12 August 2018

टूटता हु मैं फिर भी सवर जाता हूं।

इन पहाड़ियों से मैं फिर भी उतर जाता हूं।।

 जितना डराते है मुझे लोग इस जमाने के ।

मैं उनकी बातों से उतना ही निखर जाता हूं।।

वक़्त के साथ चलना मुझे आता था मगर।

आपनो की भीड़ में चलने से लहर जाता हूं।!

खो न दु अपनो की उंगलियों का  सहारा  ऐ  दोस्त।।

बसा के दिल मे सभी को मैं निखर  जाता हूं।।



                                                                                                                ~~~मोहित श्रीवास्तव 

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